Size / / /

मैंने कहा आकाश

और स्टेनलेस स्टील की थाली से ढक दिया

बासी पड़ रही रोटियों को

 

मैंने कहा पेड़

और झाड़ू लेकर बुहारने लगा

अपना आँगन 

 

पेड़ की परछाई

गिलहरी बन दीवार पर चढ़ बैठी

और मेरे पुकारते ही फाँद गयी

पड़ोसी के अहाते में

 

खिड़की के झाले झाड़ते हुए मैंने देखा

तितली के खुलते पंख

कंक्रीट की तमाम बिल्डिंगों से बड़े थे

 

मैंने तितली के कान में धीरे-से कहाबादल

और हवा में विचारता रहा

देर तक

 

मैंने कहा पृथ्वी

और खोजता रहा अपने लिए

खड़े होने की जगह।



Sourav is a Hindi poet, translator, and educator based in Bangalore, India. Website link: https://souravroy.com/